देश को लोगों को
एक बार फिर से बिजली के झटके लग सकते हैं. आने वाले समय में बिजली कंपनियां बिजली
के दाम बढ़ा सकती हैं. जानकारी के मुताबिक कर्ज के बोझ तले दबी देश की बिजली
उत्पादक कंपनियों ने पर्यावरण मंत्रालय के दिशानिर्देशों को पालन करने में सरकार
की मदद मांगी है. आधिकारिक जानकारी के अनुसार सरकारी और प्राइवेट बिजली उत्पादक
कंपनियों ने अपनी तकनीक को अपग्रेड करने के लिए मदद मांगी है. इस अपग्रेडेशन के
तहत कोयला आधारित पुराने प्लांट्स में तकनीक को अपडेट किया जाएगा. इस खर्च को आधा
करने के लिए कंपनियों ने सरकार से वित्तीय मदद मांगी है.
सूत्रों के मुताबिक कंपनियों ने सरकार से
गुजारिश की है ग्रीन सेस के तौर पर बने फंड के कुछ हिस्से का इस्तेमाल
रेट्रोफिटिंग पर आने वाले खर्च के रूप में किया जाए. सूत्रों के मुताबिक, ऊर्जा मंत्रालय इस मसले
पर वित्त मंत्रालय से संपर्क करेगी. दरअसल सरकार कोयले पर ग्रीन सेस के रूप में
प्रति क्विंटल 400 रुपए लेती है.
दरअसल पावर
प्लांटों के तकनीक को अपग्रेड करने से बिजली कंपनियों के मैकेनिज्म की लागत बढ़
जाएगी. जानकारी के मुताबिक बिजली उत्पादक कंपनियां पहले से ही कर्ज के बोझ की मार
झेल रही हैं. कंपनियों का कहना है कि अगर दाम नहीं बढ़ाए गए तो इससे कंपनियों का
काफी ज्यादा बढ़ जाएगा. इनपुट कॉस्ट में बढ़ोतरी होने और बिजली के दाम प्रति यूनिट
के हिसाब से 93
पैसे तक बढ़ सकते हैं. जाहिर है अगर बिजली के दाम बढ़ते है तो आम उपभोक्ताओं की
मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं.
माना जा रहा है कि
करीब 300
प्लांट में तुरंत रेट्रो फिटिंग किया जाना जरूरी है. हालांकि, सरकार 25 साल से पुराने प्लांट के रेट्रोफिटिंग के
पक्ष में नहीं है. जनकारी के मुताबिक, सरकार पुराने प्लांट
की रेट्रोफिटिंग के बजाए सुपरक्रिटिक्ल टेक्नालॉजी का इस्तेमाल करना चाहती है.
लेकिन, अपेक्षाकृत कम पुराने प्लांट के लिए ठोस रणनीति बनाने
की दरकार है ताकि पावर सेक्टर पर भी बोझ न पड़े और बिजली के दामों को कंट्रोल करने
में मदद मिले.
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