कांग्रेस भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक
मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं. इसके लिए विभिन्न
विपक्षी पार्टियों के सासंदों ने महाअभियोग के प्रस्ताव के मसौदे पर हस्ताक्षर कर
दिए हैं. रांकपा के सांसद माजिद मेमन ने इसकी पुष्टि की है. ऐसे में जानिए इससे
पहले किन-किन जजों पर महाअभियोग चलाया गया है.
न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन का मामला
साल 2011 में राज्यसभा ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के
न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को एक न्यायाधीश के तौर पर वित्तीय गड़बड़ी
करने और तथ्यों की गलतबयानी करने का दोषी पाया था. इसके बाद उच्च सदन ने उनके
खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया था.
हालांकि, लोकसभा में महाभियोग की कार्यवाही
शुरू किए जाने से पहले ही न्यायमूर्ति सेन ने पद से इस्तीफा दे दिया था.
न्यायाधीश पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का नोटिस
साल 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गुजरात उच्च
न्यायालय के न्यायाधीश जे बी पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का नोटिस भेजा था.
उन्हें यह नोटिस ‘‘आरक्षण
के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ एक
मामले में फैसले को लेकर दिया गया था.
महाभियोग का नोटिस राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी को
भेजने के कुछ ही घंटों बाद न्यायाधीश ने फैसले से अपनी टिप्पणी को वापस ले ली थी.
न्यायाधीश पी डी दिनाकरण को लेकर विवाद
भूमि पर कब्जा करने, भ्रष्टाचार और न्यायिक पद का
दुरुपयोग करने को लेकर जांच के दायरे में जो एक अन्य न्यायाधीश आए थे उसमें
सिक्किम उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश पी डी दिनाकरण का नाम आता है.
उन्होंने अपने खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही 2011 में पद से
इस्तीफा दे दिया था.
न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागार्जुन रेड्डी को लेकर
विवाद
साल 2016 में आंध्र और तेलंगाना उच्च न्यायालय के
न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागार्जुन रेड्डी को लेकर एक विवाद पैदा हो गया जब एक दलित
न्यायाधीश को प्रताड़ित करने के लिये अपने पद का दुरुपयोग करने को लेकर राज्यसभा
के 61 सदस्यों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिये एक याचिका दी थी.
बाद में राज्यभा के 54 सदस्यों में से उन 9 ने अपना
हस्ताक्षर वापस ले लिया था, जिन्होंने
न्यायमूर्ति रेड्डी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव दिया था.
जस्टिस वी रामास्वामी पर शुरू की गई महाभियोग की
कार्यवाही
वहीं साल 1990 में पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस
वी रामास्वामी पर 1993 में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी. हालांकि, लोकसभा
में न्यायमूर्ति रामास्वामी के खिलाफ लाया गया महाभियोग का प्रस्ताव इसके समर्थन
में दो तिहाई बहुमत जुटाने में विफल रहा था.
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