आपराधिक मामले में जनहित याचिका (PIL) दायर
होने से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने आज एक वकील से सवाल किया, ‘क्या
बलात्कार पीड़िता का कोई रिश्तेदार राहत के लिये हमारे सामने है, या
क्या आपका कोई ऐसा रिश्तेदार है जिससे बलात्कार हुआ है.’
न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर
राव की पीठ ने अधिवक्ता एम एल शर्मा से जनहित याचिका दायर करने के औचित्य पर सवाल उठाते हुये अचरज व्यक्त किया कि
आपराधिक मामलों में जनहित याचिका कैसे दायर हो सकती है.
दरअसल, इस वकील ने आरोप लगाया था कि
पुलिस बलात्कार के ऐसे मामलों में FIR दर्ज नहीं कर रही हैं जिनमें
मंत्रियों, सांसदों
या विधायकों जैसे ताकतवर लोगों की संलिप्तता होती है. शीर्ष अदालत ने इस वकील से
जानना चाहा कि उन्नाव बलात्कार कांड के संदर्भ में उसकी क्या हैसियत है. कोर्ट यह
भी जानना चाहता था कि उन्नाव कांड से वह किस तरह प्रभावित है और इससे उसका क्या
संबंध है.
पीठ ने कहा, ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले ही इस
मामले में कुछ आदेश दिये हैं, शर्मा जी आप इस मामले में प्रभावित व्यक्ति नहीं है, आपराधिक
मामले में जनहित याचिका दायर नहीं हो सकती है.’शर्मा ने आरोप लगाया कि पूर्व
मंत्रियों और विधायकों जैसे ताकतवर लोगों की संलिप्तता वाले बलात्कार के अनेक
मामलों में पुलिस FIR दर्ज
नहीं कर रही है.
पीठ ने वकील से सवाल किया, ‘इन
बलात्कार के मामलों में आप कौन हैं? क्या बलात्कार पीड़िता का कोई
रिश्तेदार राहत के लिये हमारे सामने है? क्या आपका ऐसा कोई रिश्तेदार है
जिसके साथ बलात्कार हुआ है. पीठ की तल्ख टिप्पणी के बाद कोर्ट रूम कक्ष में वकीलों
के बीच एकदम सन्नाटा पसर गया.
इसके बाद भी जब शर्मा ने अपनी याचिका पर जोर दिया तो
कोर्ट ने इसे खारिज करते हुये कहा कि इस पर विचार नहीं किया जा सकता. शीर्ष अदालत
उत्तर प्रदेश के बीजेपी विधायक की कथित संलिप्तता वाले उन्नाव सामूहिक बलात्कार
मामले की सीबीआई जांच के लिये दायर याचिका पर 11 अप्रैल को सुनवाई के लिये तैयार
हो गयी थी.
वकील शर्मा का यह भी आरोप था कि पीड़िता के पिता को
यातना दी गयी और सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के इशारे पर पुलिस हिरासत में उनकी हत्या
भी हो गयी है. उन्होंने पिछले साल जुलाई में नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार
के मामले की सीबीआई जांच का भी अनुरोध किया था.
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