उच्चतम न्यायालय ने आज मोबाइल फोन को आधार से
अनिवार्य रूप से जोड़ने के सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किये और कहा कि
उपयोगकर्ताओं के अनिवार्य सत्यापन पर उसके पिछले आदेश को औजार के रूप में प्रयोग
किया गया।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि लोकनीति फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित
याचिका पर उसके आदेश में कहा गया था कि मोबाइल के उपयोगकर्ताओं को राष्ट्र सुरक्षा
के हित में सत्यापन की जरूरत है।
यह पीठ आधार और इसके 2016 के एक कानून को चुनौती देने वाली
याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। पीठ ने कहा, असल में उच्चतम न्यायालय ने ऐसा
कोई निर्देश नहीं दिया लेकिन आपने इसे मोबाइल उपयोगकर्ताओं के लिए आधार अनिवार्य
करने के लिए औजार के रूप में प्रयोग किया।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ( यूआईडीएआई ) की ओर
से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि दूरसंचार विभाग की अधिसूचना ई
केवाईसी प्रक्रिया के प्रयोग से मोबाइल फोनों के पुन : सत्यापन की बात करती है और
टेलीग्राफ कानून सेवाप्रदाताओं की '' लाइसेंस स्थितियों पर फैसले के
लिए केन्द्र सरकार को विशेष शक्तियां देता
है।
पीठ ने कहा, आप ( दूरसंचार विभाग ) सेवा
प्राप्त करने वालों के लिए मोबाइल फोन से आधार को जोड़ने के लिए शर्त कैसे लगा
सकते हैं? पीठ
ने कहा कि लाइसेंस समझौता सरकार और सेवा प्रदाताओं के बीच है।
यूआईडीएआई के वकील द्विवेदी ने कहा कि आधार योजना का
लगातार दो सरकारों ने समर्थन किया और शीर्ष अदालत में एक पक्षकार के लिए इसका
विरोध करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मंत्रियों के उस अधिकार प्राप्त समूह
का हिस्सा थे जिसने आधार के मुद्दे पर गौर किया था।
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