क्या आप जानते हैं कि देश को हिला कर रख देने वाले
कठुआ रेप मामले की सुनवाई भारतीय दंड संहिता के तहत नहीं होगी। जी हां यह सच है यह
मामला आईपीसी की धाराओं के तहत नहीं निपटाया जाएगा। भले ही इस केस को भारत के
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष आदेश देकर पंजाब के पठानकोट ट्रांसफर कर दिया है, लेकिन
इसके बावजूद भारत में लागू होने वाले कानून की धाराओं के तहत इस पर फैसला नहीं
होगा। यह केस आईपीसी के बजाए आरपीसी के
तहत सुना और निपटाया जाएगा। भले ही केस पंजाब में क्यों न ट्रांसफर किया गया
है।
क्या है आररपीसी?
दरअसल भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को स्वायत्ता
प्रदान की गई है। अनुच्छेद 370 के दिए गए इस विशेषाधिकार के चलते ही यहां भारतीय
दंड संहिता लागू नहीं होती। जम्मू-कश्मीर का अपना अलग पीनल कोड यानी दंड संहिता
है। इसे रणबीर पीनल कोड यानी आरपीसी कहते हैं। राज्य में हुए तमाम अपराधों पर
सुनवाई इसी के तहत होती है। ऐसे में कठुआ केस भी इसी के तहत सुना जाएगा और इसी
पीनल कोड के तहत सजा का ऐलान होगा। ब्रिटिश राज के दौरान जब जम्मू-कश्मीर में
महाराजा रणबीर सिंह का राज था उस समय उन्होंने अपराधों को लेकर एक दंड संहिता बनाई थी। भारत की आजादी के बाद भी जम्मू-कश्मीर
में यह रणबीर पीनल कोड जारी रहा। ऐसे में आज भी राज्य में आईपीसी के बजाए आरपीसी
लागू है।
क्या फर्क है आईपीसी और आरपीसी में?
दोनों दंड संहिताओं में कोई खास फर्क नहीं है।
जम्मू-कश्मीर की दंड संहिता यानी आरपीसी
में विदेश या समुद्री यात्राओं के दौरान होने वाले अपराधों को लेकर कोई
नियम/प्रावधान नहीं है। जबकि कुछ धाराओं में भारत के बजाये जम्मू-कश्मीर का जिक्र
है। हालांकि शेष धाराएं लगभग समान हैं लेकिन उनकी संख्या में जरूर बदलाव है। खास
तौर पर दुराचार और हत्या जैसे जघन्य मामलों में सजा आईपीसी के बराबर ही है।
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