नोटबंदी के दो उद्देश्य थे। पहला कालेधन को खत्म करना और दूसरा कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाना।
पहले उद्देश्य की हवा उसी वक्त निकल गई थी जब
आरबीआई ने 99 फीसदी नोटों के सिस्टम में वापस आने की पुष्टि की थी। वहीं हालिया
जानकारी से यह भी साबित हो गया कि नोटबंदी का दूसरा उद्देश्य भी फेल हो गया है।
देश की जनता के हाथ में इस समय 18.5 लाख करोड़ की नकदी है जबकि
नोटबंदी से पहले 5 जनवरी 2016 को यह राशि 17 लाख करोड़ रुपये थी। भारतीय रिजर्व
बैंक के आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है। नोटबंदी के दौर की बात करें तो उस दौरान
जनता के हाथ में नकदी सिमट कर करीब 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई थी।
आरबीआई के मुताबिक, 1 जून 2018 को 19.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक की
मुद्रा चलन में थी। यह एक वर्ष के पहले की तुलना में 30 फीसदी अधिक है और छह जनवरी
2017 के 8.9 लाख करोड़ रुपये की तुलना में दोगुने से अधिक है। वहीं मई 2018 तक
लोगों के हाथ में 18.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की मुद्रा थी, जो कि एक वर्ष पहले की तुलना में 31 प्रतिशत अधिक है। यह 9 दिसंबर 2016 के
आंकड़े 7.8 लाख करोड़ रुपये के दोगुने से अधिक है।
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि मई 2014 में मोदी सरकार के आने
से पहले लोगों के पास लगभग 13 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा थी। एक वर्ष में यह बढ़कर
14.5 लाख करोड़ से अधिक और मई 2016 में यह 16.7 लाख करोड़ हो गई।
आरबीआई के मुताबिक, कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये की अमान्य मुद्रा में से
30 जून 2017 तक लोगों ने 15.28 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा बैंकों में जमा करवाई।
यह है लोगों के हाथ में पड़ी मुद्रा का मतलब
चलन में मौजूद कुल मुद्रा में से बैंकों के पास पड़ी नकदी को घटा देने
पर पता चलता है कि चलन में कितनी मुद्रा लोगों के हाथ में पड़ी है। भारतीय रिजर्व
बैंक चलन में मुद्रा के आंकड़े साप्ताहिक आधार पर और जनता के पास मौजूद मुद्रा के
आंकड़े 15 दिन में प्रकाशित करता है।
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