एनडीए की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
(आरएलएसपी) के अध्यक्ष और केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम पर बड़ा हमला बोला है। कुशवाहा ने कोलेजियम व्यवस्था को
लोकतंत्र पर काला धब्बा बताया है। उन्होंने इसे एक पक्षपातपूर्ण प्रणाली कहा जो
न्यायाधीशों को अपने "उत्तराधिकारी" चुनने की इजाजत देता है।
उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को पटना में न्यायिक
व्यवस्था का लोकतांत्रिकरण विषय पर आयोजि संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इसके बाद इस
कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "मौजूदा समय में न्यायपालिका के रुख से लगता है कि जज
दूसरे जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं, वास्तव में वे अपने उत्तराधिकारी
नियुक्त करते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? अपने उत्तराधिकारी को चुनने के
लिए एक व्यवस्था क्यों बनाई गई?"
कुशवाहा यहीं नहीं रूके। इसके बाद उन्होंने आरोप
लगाया कि कोलेजियम व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी है और न्यायाधीश परिवारवाद में
शामिल हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का
जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यदि एक चाय बेचने वाला प्रधान मंत्री बन सकता है
और एक मछुआरा समुदाय का बेटा देश का राष्ट्रपति बन सकता है, तो
हाशिए पर पड़े समुदायों से जज बनने की आकांक्षा रखने वालों के लिए सुप्रीम कोर्ट
का दरवाजा क्यों बंद है।
कुशवाहा ने कहा, "लोग आरक्षण का विरोध करते हैं, कहते
हैं कि यह योग्यता की अनदेखा करता है लेकिन मुझे लगता है कि कोलेजियम योग्यता की
अनदेखा करता है। एक चाय बेचने वाला पीएम बन सकता है, मछुआरे का बच्चा वैज्ञानिक बन
सकता है और बाद में राष्ट्रपति बन सकता है, लेकिन क्या एक नौकरानी का बच्चा
जज बन सकता है? कोलेजियम
हमारे लोकतंत्र पर एक धब्बा है।"
केंद्रीय मंत्री की यह टिप्पणी उत्तराखंड के चीफ
जस्टिस जस्टिस केएम जोसेफ को सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त करने पर केंद्र सरकार
और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच जारी गतिरोध के बीच आई है।
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