Migrant
Workers Not Helped Walking Home During Lock Down News
लॉक डाउन में हर इंसान खुदगर्ज हो गया. कुछ थोड़े से ही लोग दिखे जो अंजानो की मदत कर कर रहे हैं. जिस दुकानदार को मोका मिला उसनें लोगो से ज्यादा पैसे लेकर सामान बेचा. पुलिस ने डंडे चला कर कोरोना को हराने की कोशिश की और फिर कुछ सिविल ड्रेस वालो को डंडे दिए ताकी वो भी आम जनता पर हाथ साफ़ करे. डॉक्टरों को बिना PPE किट के ही मैदान में उतार दिया. सरकारों ने सिर्फ जनता को डराया और मीडिया के लिए हैडलाइन प्रदान की.

Mother With Her Child Trying To Reach Home Walking During Lock Down India
देखे कैसे गरीब
और साहासी माँ एक हाथ में अपने बच्चे को और दूसरे हाथ में अपनी गृहस्थी को समेटे
अपने घर के लिए निकली. हालांकि हमें इस बात का पूरा अंदेशा है कि लोगों को इससे
फर्क नहीं पड़ता. अब यह हमारे देश में एक नया न्यू नॉरमल मान लिया गया है. यह
महिला सूरत से निकली है और इलाहाबाद तक का सफर पैदल ही शुरू कर दिया. जिस देश को
हम सोने की चिड़िया बोलते थे, जिस देश को हम विश्व गुरु बनने का सबसे पहला स्थान
देते हैं, उस देश में एक असहाय गरीब महिला अकेले ही बच्चे को लेकर सफर में निकल
पड़ती है.

बच्चे की हालत देखना, हालांकि वह गोद में है मगर फिर भी दिख है कि बच्चा बहुत बुरी तरीके से थक चुका है. जिनको इससे फर्क नहीं पड़ता कृपया कर इस बच्चे की आंखों में झांकने की कोशिश करें. उसकी मासूमियत गरीबी के साथ आपको दिख जाएगी. हां अगर आपका दिल पत्थर का हो चुका है तो आपको शायद ही दिखाई दे.
जब लॉक
डाउन किया तो 4 घंटे का समय दिया गया, मगर क्या
इस 4 घंटे को हम 4 दिन नहीं कर सकते थे. आप आकर बता देते इस तारीख से हम लोग टाउन
करेंगे जिसको जहां जाना है, वह अपनी व्यवस्था करके पहुंच जाए. मगर हमने ऐसा नहीं
किया. पहले तो हमने कहा जो जहां है वही रहे मगर शासन फेल हो गया. अगर कुछ एनजीओ और
कुछ मानवता भरे हुए इंसान बाहर नहीं आते और लोगों की मदद नहीं करते तब तक पता नहीं
कितने ही लोग भूखे मर चुके होते. हम इन एनजीओ का और उन स्वयंसेवीओ का एहसान मानते
हैं, कि उन्होंने इस आपदा की स्थिति में लोगों की मदद की. हम उस आदमी का एहसान
मानते हैं, जो इस महिला से कहता है कि मेरे पास बहुत ही अच्छा ठंडा पानी है पीयोगी
क्या, वह महिला पानी पीने रुक जाती है. खुदा करे ऐसे लोगों को अपनी तरफ से
जितना नवाज सकता है नवाज दे. शासन तो ऐसे लोगों को पूछने वाली नहीं.
क्या सड़क
पर गर्भवती को चलतें देखकर अच्छा लग रहा हैं.Pregnant Lady Walking Home With Family During Lock Down India
लॉक डाउन
के इतने दिनों बाद आखिरकार हमें वही करना पड़ा, की जो मजबूर गरीब इधर-उधर फंसे हैं,
उनको अपनी जगह पहुंचा दें. जब इन गरीबों को भेजना था तो पहले तो राज्य सरकारों के
ऊपर छोड़ दिया गया, कि तुम बसे करो और बस में भर के इनको ले जाओ. जब बसों का अरेंजमेंट
नहीं हो पाया, जो कि नहीं हो सकता था तो ट्रेनों को खोला गया.
उसमें भी
जो पहला नोटिफिकेशन है आप 11c में देखेंगे कि उसमें साफ साफ कहा
गया है कि राज्य शासन जिनको ओके करती है. उन मजदूरों को टिकट दे दे और जो टिकट का
पैसा उन से इकट्ठा किया जाएगा और रेलवे को दे दिया जाए. Govt Order To Charge Ticket Money From Migrant Labours During Lock Down

Sonia Gandhi Congress Letter To Support Workers During Lock Down India
मगर इसी
बीच में सोनिया गांधी ने लेटर जारी करके कह दिया कि पूरे देश के हर प्रदेश की
कांग्रेस इकाई इन मजदूरों के टिकट का पैसा दे. तो आनन-फानन में अपनी इज्जत बचाने
के लिए यह बात कह दी गई 85% पैसा केंद्र सरकार देगी और 15% राज्य सरकार देगी. क्या यह सब पहले नहीं किया जा सकता क्या. लॉक
डाउन के पहले ही लोगों का इंतजाम कर दिया जाता, कि यह अपने घर पहुंच जाएं. जब
भारतीय रेल #PMCare में 150 करोड़ रुपए जमा कर सकती है, तो
क्या वह इन मजदूरों के लिए फ्री में ट्रेन नहीं चला सकती थी?

हम हर चीज
जो कि सरकार की है उसको पब्लिक प्रॉपर्टी बोलते हैं क्योंकि वह पब्लिक के पैसे से
बनी है. क्या इस आपदा के समय में भी पब्लिक का हक नहीं बनता, कि वह इन पब्लिक
सेक्टर ट्रेनों का इस्तेमाल करती?
प्रधानमंत्री
के लिए दो जेट खरीदे जा सकते हैं जो कि करीब 8458 करोड़ के हैं क्या थोड़ा सा पैसा
पीएम केयर से निकालकर इन गरीबों के लिए या फिर यूं कहो देशवासियों के लिए खर्च
नहीं किए जा सकते.
कृपया कर
इस खबर को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मानवता जा
सके.
धन्यवाद
Dr. Siraj Khan
Chief Editor
9589333311
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