Open Letter By Advocate Nirmala Nayak About Present Day Practicing
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वीजन इलेक्षन
मैं, मेरी नजर में
प्रथम पीढ़ी की अधिवक्ता होने के
नाते विधि एवं न्याय के क्षेत्र में
स्थापित होने के लिये कुछ कदम जो मैने चले..............
मेरे द्वारा अधिवक्ता के रूप मंे कार्य करते हुये मुझे वरिष्ठ अधिवक्ताओं का सानिध्य, मित्रों का सहयोग एवं अनुजों का सम्मान मिला । इस परिसर में काम करते हुये शासकीय पैनल अधिवक्ता, दो बार शासकीय अधिवक्ता, केन्द्र सरकार के संस्थानों के अधिवक्ता, बैंक एवं इंष्योरेंष कंपनी, विष्व विद्यालयों सहित प्रो-बोनो एवं विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिवक्ता सहित विभिन्न विधाओ, विधि कार्य करने का अवसर मिला। 2011 से प्रषिक्षित मध्यस्थ (मीडियेटर) एवं नेषनल लोक अदालत में बेंच में बैठने का अवसर एवं विभिन्न प्रकरणों में माननीय न्यायाधीषगणों के आदेष पर ऐमिकस क्यूरी (ंउंपबने बनतपम ) एवं कमीषन का कार्य करने का अवसर मिला। सामाजिक क्षेत्र में विधिक एवं सामाजिक विषयों पर 150 से अधिक व्याख्यान, करीब 5 दर्जन मंच संचालन, दो राष्ट्रीय आयोजन करते हुये माननीय राज्यपाल महोदय के नामांकित प्रतिनिधि के रूप में महाराजा छत्रसाल बुुंदेलखंड विष्वविद्यालय के कार्य परिषद सदस्य बनने का अवसर प्राप्त हुआ, विभिन्न सामाजिक एवं विधिक मंचों से सम्मान प्राप्त हुआ एवं मेरी कार्य की सराहना की गयी।
अतः मेरा मानना है कि विधि व्यवसाय केवल आय अर्जन करने का जरिया नहीं हो सकता । इस व्यवसाय और परिसर ने मुझे पद, मान, प्रतिष्ठा, सम्मान एवं पहचान दिलायी है। अतः मेरा नैतिक कर्तव्य है कि मैं अपने अधिवक्ता समूह का प्रतिनिधित्व करू और अपने अनुभवों को सांझा करते हुये आप सबके सहयोग से सकारात्मक कार्य करूॅ।
मेरे
मन में क्या है -
मैं उच्च न्यायालय परिसर में ऐडवोकेसी
का वह स्वर्णिम युग पुनः स्थापित करना चाहती हॅू जब बार और बेंच के मध्य एक आत्मीय
और सम्मानजनक व्यवहार हुआ करता था। वरिष्ठ अधिवक्ता कनिष्ठ अधिवक्ताओं के प्रति
स्नेह व सम्मान का भाव रखते थे। कनिष्ठ अधिवक्ता अपने वरिष्ठों के प्रति समर्पण और
विष्वास का भाव रखते थे। महिला अधिवक्ताओं के प्रति आदरणीय व सहयोगी व्यवहार हुआ
करता था। न्यायाधीषगण अधिवक्ताओं की समस्याओं को अपनी जिम्मेदारी समझकर हल किया
करते थे। अधिवक्तागण अपने प्रकरणों का संतानों जैसा ध्यान रखा करते थे। एक सुदृढ़ व
सुस्थापित न्याय व्यवस्था थी और समाज में न्यायालय, न्यायाधीष, अधिवक्तागणों का विषिष्ट सम्मान और
विष्वास था।
मैं चाहती हूॅं कि न्यायालय परिसर साफ
सुथरा, संपूर्ण
संषाधनों से युक्त हो जिसमें व्यवस्थित बैठने का स्थान एवं रेस्ट रूम हों।
पक्षकारगणांे के लिये भी व्यवस्थित बैठने का स्थान हो। अधिवक्तागणों के क्लर्क को
सुविधायें एवं पहचानपत्र जारी हों। अधिवक्तागणों के वाहनों की पार्किंग चिन्हित व
स्थायी व्यवस्था हो। उन्हें न्यायालयीन परिसर में वाईफाई एवं इंटरनेट सहित
ई-लायबे्ररी आसानी से एक्सेस करने का मौका मिले एवं नोटरी, ओथ कमिष्नर, स्टाम्प वेंडर, स्टेनों-टायपिस्ट, फोटोकापियर एवं इंटरनेट सेवा प्रदाताओं
के बैठने का उचित एवं व्यवस्थित प्रबंध हो।
वरिष्ठों के लिये मेरे मन में अगाध
सम्मान है अतः मैं चाहती हूॅं कि उन्होनंे अपने न्यायालयीन कार्य में किस प्रकार
उन्नति प्राप्त की है ऐसे अनुभव लाॅ-लिटरेसी क्लासेस के माध्यम से अधिवक्ताओं के
समक्ष आये, जिस
पर न्यायाधीषगणों के अनुभव अधिवक्ताओं को सुनने का अवसर प्राप्त हो ताकि
अधिवक्तागण अपने कार्य का सरलीकरण कर सकें। अतः मैं रेग्युलर विभिन्न विषयों पर
ला-लिटरेसी क्लासेस जारी रखने की इच्छा रखती हूॅं। वरिष्ठ अधिवक्तागणों का बराबर सम्मान हो और न्यायालय
को उनके अनुभवों का लगातार लाभ मिल सके।
महिला अधिवक्ताओं के लिये मेरे मन में -
मैं चाहती हूॅं कि जिस प्रकार परिवार
व्यवस्था में महिला अधिवक्ताओं का सम्मान एवं स्थान है वैसा ही उन्हें न्यायालय
परिसर में सम्मान व सुरक्षा का विष्वास रहे, उन्हें उनकी रूचि व क्षमता के अनुसार
न्यायिक कार्यक्षेत्र में अवसर एवं पदस्थापना प्राप्त हों।
मध्यमवर्गीय अधिवक्ताओं के लिये मेरे मन में -
मध्यम स्तरीय ज्यादातर अधिवक्ता लगातार
संघर्ष करते हुये स्थायित्व प्राप्त करते है तब जरूरी है कि उनके पास जो भी प्रकरण
है समय से लिस्ट हों उनमें आवष्यकतानुसार सुनवायी हो, उन्हें आसानी से साईटेषन व जर्नल्स
प्राप्त हो जाये, उन्हंे न्यायाधीषगणों एवं न्यायालयों से यथेष्ट सम्मान मिले एवं
उन्हे योग्यतानुसार पदस्थापना कर उत्तम अवसर प्रदान हों।
नवआगंतुक अधिवक्ताओं के लिये मेरे मन में -
नये अधिवक्तागणों को प्रारंभिक समय में
कार्य करने हेतु समुचित स्थान व प्रकरण प्राप्त हो सके, उन्हें नये नये कार्य करने का अवसर
प्राप्त हो, रिसर्च
ओरियेंटेड वर्क एवं एक्सपीरियंस वर्क, ड्राफ्टिंग व प्लीडिंग, गायडेंस क्लासेस, बैठने का स्थान की उपलब्धता एवं अपना
हुनर दिखाने के लिये सेमीनार का समविधिक एवं विधिक विषयों पर आयोजन, सोषल-जनरल प्रोग्राम ताकि वे स्थापित
अधिवक्तागणों के समूह में शीघ्रता से जुड़ सके एवं उन्हें स्टायफंड की भी व्यवस्था
हो।
मैं बार काउंसिल आॅफ इंडिया के
निम्नानुसार 10
सूत्रीय मांगों का समर्थन करती हॅूं। इस संदर्भ में राज्य अधिवक्ता परिषद और
मध्यप्रदेष की सरकार के समक्ष दृढ़ता से विषय रखकर पूर्ण कराने का सामथ्र्य रखती
हूॅं जो कि इसप्रकार है:-
1. अधिवक्ता मित्रांे और उनके परिवारजनों
को 20
लाख रूपये का इंष्योरेंस लाभ मिलना चाहिये।
2. मेडिक्लेम के माध्यम से अधिवक्तागणों
एवं उनके परिवार को निःषुल्क उचित और उच्च स्तरीय स्वास्थ्य की व्यवस्था होनी
चाहिये।
3. नवआगंतुक अधिवक्ताओं के लिये न्यूनतम 10 हजार रूपये मासिक स्टायफंड की
व्यवस्था हो।
4. बुजुर्ग अधिवक्ता और उनके परिवार के
हेतु न्यूनतम 50
हजार रूपये मासिक पेंषन की व्यवस्था हो।
5. संसद द्वारा शीघ्र अतिषीघ्र एडवोकेट
प्रोटेक्षन एक्ट पारित किया जाये।
6. सभी बार संघ के पास बिल्डिंग, बैठक व्यवस्था, लायब्रेरी, ई-लायब्रेरी, इंटरनेट, टायलेट आदि की व्यवस्था पृथक रूप से
महिला अधिवक्ताओं के लिये हों।
7. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के
अंतर्गत संषोधन कर अधिवक्ताओं को कार्य करने का अधिक अवसर दिया जाये उन्हें
न्यायाधीषगणों के साथ बैठकर न्याय हेतु कार्य करने का अधिकतम अवसर मिले।
8. ऐसे सभी अधिनियम जहां पर सेवानिवृत
न्यायाधीषों, न्यायिक
अधिकारियों, प्राधिकरणों
के सदस्य के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था है वहां अधिवक्ता मित्रों को नियुक्ति
की व्यवस्था की जानी चाहिये।
9. किसी अधिवक्ता मित्र की समय से पूर्व (65 वर्ष की आयु के पूर्व) मृत्यु हो जाने
पर उनके परिवार एवं उन पर आश्रित सदस्यों को सरकार द्वारा 50 लाख रूपये अनुदान दिया जाना चाहिये।
10. अधिवक्ताओं के लिये घर बनाने हेतु, लायब्रेरी बनाने हेतु, गाड़ी खरीदने हेतु लिये जाने वाले लोन
की ब्याज दरें न्यूनतम होनी चाहिये।
मेरा विष्वास है कि अधिवक्ता समूह के
मध्य प्रतिनिधित्व के दौरान् अधिवक्ता समुदाय पर आने वाली किसी भी वैष्विक आपदा या
विपत्ती अथवा सामाजिक व आर्थिक परेषानी के लिये मेरी उपलब्धता सदैव रहेगी एवं किसी
भी अधिवक्ता को अकारण किसी भी विषम एवं दुःखद घड़ी से नहीं गुजरना होगा। उनकी
समस्यायें मेरी अपनी होंगी। इस हेतु पृथक से सुरक्षा व समन्वय समिति का गठन किया
जायेगा जिनके मोबाईल नंबर एवं ई-मेल आई.डी. चैबीसों घंटे उपलब्ध रहेंगे।
मेरा विषेष प्रयास अधिवक्ता कल्याण
हेतु धन एकत्रीकरण का होगा ताकि कार्यक्रम के आयोजनों के समय, आपत्ति और विपत्ति के समय, किसी अधिवक्ता का सहयोग करते समय पृथक
से धन संग्रह करने की आवष्यकता ना पड़े। अतः अधिवक्ता कल्याण कोष बनाया जायेगा
जिसकी मानीटरिंग कमेटी होगी जो तत्काल प्रभाव से आवष्यकतानुसार अपेक्षित
अधिवक्तागणों को व्यवस्था उपलब्ध करा सकेगें।
बार एवं बंेच के समन्वय के लिये संघ की
ओर से तीन सदस्यीय समन्वय समिति होगी एवं माननीय न्यायाधीष से भी आग्रह किया
जायेगा कि उनकी ओर से भी एक को-आर्डीनेटर नियुक्त किया जाये जिससे छोटे बड़े
मामलांे में तुरंत चर्चा हो सके और समाधान निकाला जा सके।
राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा जायेगा
कि निगम मंडलों और संस्थानों मंे अधिवक्ता पैनल के रिक्त पदों पर तुरंत नियुक्ति
की जाये, साथ
ही यह भी आग्रह किया जायेगा कि केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य स्थापित अधिकरणों
व फोरम में तत्काल प्रभाव से आवष्यकतानुसार अधिवक्तागणों की नियुक्ति की जायेगी।
अधिवक्ताओं के हितांे में राज्य सरकार
को एक प्रस्ताव भेजा जायेगा कि जितने भी राजस्व न्यायालय राज्य के अंतर्गत प्रचलन
में है वहां पर वर्तमान मंे हो रही एक पक्षीय पैरवी के स्थान पर शासन का पक्ष प्रस्तुत
करने हेतु अधिवक्ता पैनल की नियुक्ति की जावे जिससे कई हजार अधिवक्ताओं को स्थायी
कार्य प्राप्त होगा।
ऐसा आग्रह किया जायेगा कि शासन की
पूर्व में घोषणा के अनुसार सभी पुलिस थानों में एफ.आई.आर. के पंजीबद्ध होने के
पूर्व वेरीफिकेषन हेतु अधिवक्ता की नियुक्ति की घोषणा को तत्काल प्रभाव से लागू
किया जाये।
वे सभी सुझाव कार्यरूप में लाये
जायेंगे जो समय समय पर सदस्य अधिवक्ताओं के द्वारा सुझाये जायेंगे एवं समय, काल, परिस्थिति के अनुसार अधिवक्ता कल्याण
हेतु त्वरित निर्णय सर्वसम्मति से लेकर करने योग्य कार्य किये जायेंगे। जिस हेतु
एक सुझाव पेटी कार्यालय के बाहर लगायी जायेगी एवं प्रत्येक पत्राचार का यथा योग्य
प्रतिउत्तर दिया जायेगा। आवष्यकता होने पर अधिवक्ता सदस्य को चर्चा हेतु आमंत्रित
किया जायेगा, उचित
सुझाव का सराहना पत्र भी जारी किया जायेगा। गोपनीय सुझाव पर नाम उद्घटित नहीं किया
जायेगा।
मैं मुख्यरूप से ये करना चाहती हूॅं कि
जिन दिवंगत माननीय वरिष्ठ अधिवक्तागणों ने इस मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय को अपना
विषिष्ट योगदान दिया है उनके नाम पर उच्च न्यायालय परिसर में अधिवक्तागणों के
बैठने, आवागवन
की गैलरी, लायब्रेरी
अथवा अन्य विषिष्ट स्थानों को उनके नाम पर नामांकित किया जाये ताकि वर्तमान एवं
नवआगंतुक अधिवक्तागण, वरिष्ठ एवं विषिष्ट अधिवक्तागणों के विषेष कार्य व उनके व्यक्तित्व
एवं उनकी कार्यषैली को सुन समझकर अंगीकार कर सकंे साथ ही उनके विषेष योगदान को यही
मेरी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय में स्थापना से लेकर आज
तक अनेकोनेक विषिष्ट और विषेष अधिवक्ताओं का योगदान रहा है उनमें से कुछ है
सर्वश्री व्ही.एस.डबीर साहब, सुमेर चंद्र जैन साहब, बाल मुकुंद द्विवेदी साहब, पंडित परमानंद दुबे साहब, एच.एस.रूपराह साहब, वल्लभ दास जैन साहब, दीवान बहादुर सीताचरण दुबे साहब, वाय.पी. वर्मा साहब, श्याम चरण उपाध्याय साहब, आर.पी. वर्मा साहब, अनंत आर. चैबे साहब, जे.पी. दुबे साहब, बी.एल.नेमा साहब, पी. सदाषिवन नायर साहब, पी.एस. खिड़वरकर साहब, मनोहर माधव सप्रे साहब, सरदार राजेन्द्र सिंह साहब, नारायण श्रीराम काले साहब, जस्टिस आर.के.तन्खा साहब, एम.एल. चंसौरिया साहब, वाय.एस. धर्माधिकारी साहब, बैजनाथ प्रसाद शर्मा साहब, जगदीष तिवारी साहब, हरिसिंह चैहान साहब, प्रभाकर रूसिया साहब, पी.डी. तिवारी साहब, प्रेमषंकर तिवारी साहब, ए.जी. धान्डे साहब, राजेन्द्र तिवारी साहब, आदर्षमुनि त्रिवेदी साहब एवं अनेक
ज्येष्ठ, श्रेष्ठ
अधिवक्तागण ।
निवेदन:-
उपरोक्तानुसार आप मुझे अपने प्रतिनिधि
के रूप में अध्यक्ष पद पर चयन करने हेतु अपना अमूल्य मत प्रदान करें एवं मेरे इस
चुनावी संघर्ष को सकारात्मक निर्णय में परिलक्षित करें ताकि मैं मध्यप्रदेष उच्च
न्यायालय अधिवक्ता संघ जबलपुर के माध्यम से अपनी सेवायें आप सभी के समक्ष मातृभाव
से प्रस्तुत कर सकूॅं।
प्रणाम
।
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