
आपके मोबाइल में मौजूद प्री इंस्टॉल या गूगल प्ले स्टोर और एप्पल स्टोर से डाउनलोड किए गए app ही आपकी सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। क्योंकि आपको भी पता नहीं चलता कि यह आपकी जानकारी किससे साझा कर रहे हैं, जो आगे जाकर एक साइबर ठगी का रूप भी ले सकती है। अमूमन हम मोबाइल में कोई ऐप इंस्टॉल करते हैं तो वह ढेर सारी परमिशन मांगता है, और उस ऐप को इस्तेमाल करने के लिए हम यह परमिशन उस ऐप को दे भी देते हैं, लेकिन आपने भी यह ध्यान दिया होगा कि कई ऐप ऐसे होते हैं जिनमें कॉन्टैक्ट, फाइल्स या कैमरा का कोई उपयोग नहीं होता फिर भी यह इंस्टॉल करने के बाद इन सभी एप्लीकेशन की परमिशन मांगते हैं, और इसी तरह से आपका मोबाइल ही डाटा चोरी करने का एक यंत्र बन जाता है। अब इस मामले में अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता के द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई है और उम्मीद है कि जल्द ही ऐसे मोबाइल ऐप्स की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे।
जनहित याचिका में उठी आवाज़, हाईकोर्ट ने माना मामला गम्भीर
देश में डिजिटल क्रांति के साथ-साथ साइबर धोखाधड़ी की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं। आए दिन ऐसे मामलों की खबरें सामने आती हैं, जिनमें आम नागरिकों की गोपनीय जानकारी, बैंकिंग विवरण और व्यक्तिगत डेटा चोरी हो जाते हैं। ऐसे परिदृश्य में जबलपुर स्थित अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता द्वारा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर की गई जनहित याचिका न केवल समय की मांग प्रतीत होती है, बल्कि आम जनता के अधिकारों की सुरक्षा का एक गंभीर प्रयास भी है। याचिका में स्पष्ट रूप से यह मांग की गई है कि भारत सरकार एक स्वतंत्र नियामक संस्था का गठन करे, जो मोबाइल और कंप्यूटर पर लॉन्च होने वाले ऐप्स की पूर्व जांच कर उन्हें आम उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षित घोषित करे। याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने मामले को सुनवाई योग्य मानते हुए चारों प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।केवल डेटा चोरी नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा भी खतरे में
याचिका में यह गंभीर आरोप लगाया गया है कि वर्तमान में बड़ी संख्या में ऐसे मोबाइल और कंप्यूटर एप्लिकेशन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मौजूद हैं जो प्रथम दृष्टया उपयोगी और सुरक्षित प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में वे स्पाईवेयर या मैलवेयर के रूप में कार्य करते हैं। ये एप्लिकेशन उपयोगकर्ताओं की जानकारी के बिना उनके डिवाइस में घुसपैठ करते हैं और बैंक खाता विवरण, क्रेडिट कार्ड नंबर, फोटो, वीडियो तथा अन्य संवेदनशील जानकारी को चुपचाप एकत्रित कर लेते हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि कुछ एप्लिकेशन विदेशी ताकतों द्वारा संचालित हो सकते हैं, जो भारत की साइबर सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं। इस प्रकार, यह केवल एक तकनीकी या उपभोक्ता सुरक्षा का मामला नहीं है, बल्कि देश की सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा का भी प्रश्न है।वर्तमान कानून ‘घटना के बाद’ की कार्रवाई तक सीमित
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्तमान कानूनी ढांचा केवल तब सक्रिय होता है जब किसी एप्लिकेशन के जरिए पहले ही नुकसान हो चुका होता है। यानी अगर कोई ऐप नुकसान पहुंचा देता है, तब संबंधित एजेंसियां उसकी जांच करती हैं और उसे प्रतिबंधित करती हैं। यह दृष्टिकोण प्रतिक्रियात्मक (reactive) है और इससे पहले ही कई निर्दोष नागरिक वित्तीय और मानसिक क्षति उठा चुके होते हैं। याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा है कि अब समय आ गया है कि भारत भी एक सक्रिय और पूर्वनियोजित (preventive) व्यवस्था अपनाए, जहां किसी भी ऐप को उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने से पहले उसकी सुरक्षा और उपयोगिता की पुष्टि की जाए।मजबूत नियामक एजेंसी की सख्त आवश्यकता
गुप्ता की याचिका में कहा गया है कि एक केंद्रीय नियामक एजेंसी, जैसे कि मोबाइल एप्लिकेशन सुरक्षा प्राधिकरण (Mobile App Regulatory Authority) की स्थापना, इन चुनौतियों का समाधान हो सकता है। यह संस्था न केवल नए एप्लिकेशन के हर कोड और कार्यप्रणाली की जांच कर सकेगी, बल्कि यह यह भी तय करेगी कि ऐप किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत जानकारी अनधिकृत रूप से तो नहीं ले रहा है। साथ ही, यह एजेंसी यह सुनिश्चित कर सकेगी कि Play Store और App Store जैसे प्लेटफॉर्म पर केवल वे ही ऐप्स उपलब्ध हों जो आवश्यक सुरक्षा मानकों पर खरे उतरते हों। संबंधित विभागो सहित मोबाइल कंपनियों को कोर्ट से मिला नोटिसहाईकोर्ट द्वारा नोटिस भेजे गए विभागों में शामिल हैं:
1. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) — जो भारत में डिजिटल नीति निर्माण और क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है।2. STQC निदेशालय — जो आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण और प्रमाणन सेवाएं प्रदान करता है।
3. C-DAC — भारत सरकार का प्रमुख अनुसंधान संस्थान, जो उच्च तकनीकी समाधान तैयार करता है।
4. CERT-In — देश की साइबर सुरक्षा के लिए जिम्मेदार आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम, जो साइबर हमलों की निगरानी और रोकथाम का कार्य करती है।
इसके साथ ही इस याचिका में प्रतिवादी बनाए गए गूगल एप्पल माइक्रोसॉफ्ट और श्यओमी टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को भी हाईकोर्ट से नोटिस जारी किया गया है। इन सभी विभागों से अब यह अपेक्षा की जा रही है कि वे बताएं कि नागरिकों को डिजिटल धोखाधड़ी से सुरक्षित रखने के लिए क्या मौजूदा कदम पर्याप्त हैं, और आगे वे क्या नया कर सकते हैं।
एक अनुभवी अधिवक्ता द्वारा सामाजिक सरोकार की आवाज़
याचिकाकर्ता अमिताभ गुप्ता न केवल एक वरिष्ठ और अनुभवशील अधिवक्ता हैं, बल्कि समाज के हित से जुड़ी कई जनहित याचिकाएं पहले भी दायर कर चुके हैं, जिनके सकारात्मक प्रभाव सार्वजनिक जीवन में स्पष्ट रूप से देखे गए हैं। उन्होंने यह याचिका पूरी तरह स्वप्रेरणा से, बिना किसी संस्था या व्यक्ति के आग्रह पर दायर की है। अदालत में पेशी, दस्तावेजी कार्यवाही और कानूनी शुल्क जैसे सभी खर्चों को उन्होंने स्वयं वहन किया है, जो उनके सामाजिक उत्तरदायित्व और जन-संवेदना की भावना को दर्शाता है।क्या भारत साइबर अपराधों के खिलाफ उठाएगा ठोस कदम?
अब प्रश्न यह है कि क्या भारत सरकार और उसके संबंधित विभाग इस गंभीर चुनौती को स्वीकार करते हुए कोई ठोस नीति या तंत्र विकसित करेंगे? यदि यह याचिका अपने उद्देश्य में सफल होती है, तो यह भारत में साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव का कारण बन सकती है। ऐसा बदलाव जो करोड़ों डिजिटल उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा को मजबूत बनाएगा और भारत को वैश्विक साइबर सुरक्षा मानकों की दिशा में अग्रसर करेगा। डिजिटल युग में जहां हर व्यक्ति एक 'स्मार्ट यूज़र' है, वहां उसकी सुरक्षा भी उतनी ही स्मार्ट होनी चाहिए। यह याचिका एक चेतावनी है कि सिर्फ तकनीकी विकास नहीं, उससे जुड़ी ज़िम्मेदारियां भी जरूरी हैंReport: Dr. Siraj Khan +91 9589333311
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